"नेजा मेला" उत्तर प्रदेश के संभल जिले में आयोजित होने वाले मेले का क्या है इतिहास , जिस वजह से नहीं लगेगा मेला

"नेजा मेला" उत्तर प्रदेश के संभल जिले में आयोजित होने वाला एक पारंपरिक मेला है, जिसका इतिहास सैयद सालार मसूद गाजी (जिन्हें गाजी मियाँ के नाम से भी जाना जाता है) से जुड़ा हुआ है। यह मेला होली के बाद दूसरे मंगलवार को शुरू होता है और इसकी शुरुआत "नेजा" (एक झंडा या भाला) गाड़ने की रस्म से होती है। यह आयोजन मुख्य रूप से एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाया जाता रहा है, जिसमें स्थानीय समुदाय, खासकर मुस्लिम समुदाय के लोग, हिस्सा लेते हैं। आइए इसके इतिहास को विस्तार से समझते हैं:
उत्पत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
नेजा मेला सैयद सालार मसूद गाजी की स्मृति में आयोजित होता है, जो 11वीं शताब्दी में एक सैन्य कमांडर थे और माना जाता है कि वे महमूद गजनवी के भतीजे थे। महमूद गजनवी, जो 1000 से 1027 ईस्वी के बीच भारत पर 17 बार आक्रमण करने के लिए प्रसिद्ध हैं, ने सोमनाथ मंदिर सहित कई मंदिरों को लूटा था। सालार मसूद उनके अधीन एक सेनापति थे और उन्होंने भी उत्तरी भारत में कई सैन्य अभियानों में हिस्सा लिया। इतिहासकारों के अनुसार, मसूद ने हिंदू समुदायों पर हमले किए, मंदिरों को नष्ट किया और जबरन धर्मांतरण करवाया। उनकी मृत्यु 1034 ईस्वी में बहराich (उत्तर प्रदेश) में राजा सुहेलदेव के हाथों हुई, जो एक स्थानीय शासक थे और जिन्होंने मसूद की सेना को हराया था।
मसूद की मृत्यु के बाद, बहराich में उनकी कब्र बनाई गई, जिसे बाद में दरगाह का रूप दिया गया। समय के साथ, उन्हें कुछ समुदायों ने "गाजी मियाँ" के रूप में एक संत के तौर पर पूजना शुरू कर दिया। नेजा मेला इसी परंपरा का हिस्सा बन गया, जिसमें उनकी याद में झंडा (नेजा) गाड़ा जाता है और फातिहा (मृतकों के लिए प्रार्थना) पढ़ी जाती है। "नेजा" शब्द फारसी से लिया गया है, जिसका अर्थ है भाला, और यह मसूद के योद्धा व्यक्तित्व का प्रतीक माना जाता है।
मेले का स्वरूप और परंपरा
नेजा मेला संभल में सैकड़ों सालों से आयोजित होता रहा है। यह तीन दिनों तक चलता है और इसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम, दुकानें और धार्मिक रस्में शामिल होती हैं। मेले की शुरुआत एक 30 फीट ऊँचे खंभे पर हरा झंडा लगाने से होती है, जो गाजी मियाँ के सम्मान में होता है। यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए एक सामाजिक और सांस्कृतिक मेलजोल का अवसर भी रहा है। कुछ स्थानीय कथाओं के अनुसार, इस मेले में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग पहले शामिल होते थे, जिसे सामाजिक एकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता था।
विवाद और ऐतिहासिक दृष्टिकोण
हालांकि नेजा मेला एक परंपरा के रूप में स्थानीय स्तर पर लोकप्रिय रहा, लेकिन इसके ऐतिहासिक संदर्भ ने इसे विवादास्पद भी बनाया है। इतिहासकारों का मानना है कि सालार मसूद एक आक्रांता थे, जिनके अभियानों ने भारत में व्यापक विनाश किया। उनकी छवि को लेकर दो मत हैं:
आक्रांता के रूप में: मसूद को महमूद गजनवी के सहयोगी के तौर पर देखा जाता है, जिन्होंने सोमनाथ मंदिर सहित कई स्थानों को लूटा और स्थानीय आबादी पर अत्याचार किए।
संत के रूप में: कुछ लोककथाओं और परंपराओं में उन्हें एक सूफी संत के रूप में चित्रित किया गया, जिसके कारण उनकी दरगाह और मेले को धार्मिक महत्व मिला।
इस दोहरे चित्रण के कारण, नेजा मेला समय-समय पर विवादों में रहा है। खासकर हाल के वर्षों में, कुछ समुदायों ने इसे एक आक्रांता की स्मृति में आयोजन मानकर इसका विरोध किया है।
वर्तमान स्थिति (2025 तक)
मार्च 2025 में, संभल प्रशासन ने नेजा मेले पर रोक लगा दी। यह निर्णय 17 मार्च 2025 को लिया गया, जब नेजा मेला कमेटी ने प्रशासन से अनुमति मांगी थी। सहायक पुलिस अधीक्षक (ASP) श्रीश चंद्र ने कहा कि "कोई भी मेला लुटेरों और हत्यारों की याद में नहीं होगा। सालार मसूद गाजी ने सोमनाथ मंदिर को लूटा और देश में नरसंहार किया। ऐसी कुरीति को जारी रखना उचित नहीं है।" प्रशासन ने इसे राष्ट्रीय हित और सामाजिक सौहार्द के खिलाफ मानते हुए अनुमति देने से इनकार कर दिया। 2023 में भी इसे "सद्भावना मेला" के नाम से आयोजित करने का प्रस्ताव था, लेकिन कमेटी ने पारंपरिक नाम पर जोर दिया, जिसके बाद इसे पूरी तरह रोक दिया गया।
निष्कर्ष
नेजा मेले का इतिहास एक जटिल मिश्रण है - परंपरा, धर्म और विवाद का। यह मेला सैकड़ों सालों से संभल की संस्कृति का हिस्सा रहा है, लेकिन इसके पीछे की ऐतिहासिक शख्सियत, सालार मसूद गाजी, इसे एक संवेदनशील मुद्दा बनाती है। आज यह मेला अपने मूल स्वरूप में नहीं हो रहा, लेकिन इसकी कहानी भारत के मध्यकालीन इतिहास और सामाजिक बदलावों को समझने का एक जरिया बनी हुई है।