"सोचिए, एक दिन अचानक आपको पता चले कि आपकी पुश्तैनी संपत्ति अब आपकी नहीं रही

"सोचिए, एक दिन अचानक आपको पता चले कि आपकी पुश्तैनी संपत्ति अब आपकी नहीं रही—बल्कि किसी और के नाम दर्ज हो गई है! कुछ ऐसा ही डर वक्फ (संशोधन) विधेयक को लेकर मुसलमानों के मन में बैठ रहा है। संसद में पेश इस विधेयक पर हंगामा मचा है—विपक्ष इसे 'मुसलमानों की संपत्तियों पर सीधा हमला' बता रहा है, तो सरकार इसे एक 'आवश्यक सुधार' कह रही है। आखिर सच्चाई क्या है? चलिए, पूरा मामला समझते हैं!"

वक्फ (संशोधन) विधेयक पर विपक्षी दलों में असंतोष की आग धधक रही है। संसद में इस विधेयक को फिर से लाने की तैयारियों के बीच AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अपने तीखे तेवर दिखाए हैं। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह विधेयक मुसलमानों की संपत्तियों पर सीधा हमला है। उनके अनुसार, सरकार वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने की योजना बना रही है और यह संविधान के मूलभूत अधिकारों के खिलाफ है। उनका दावा है कि नए संशोधन के तहत जिलाधिकारी को यह अधिकार मिल जाएगा कि वह किसी भी संपत्ति को वक्फ मानने से इनकार कर सकेगा, जिससे मस्जिदों, दरगाहों और धार्मिक स्थलों की जमीनों पर खतरा मंडराने लगेगा। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह सच में मुसलमानों पर हमला है या फिर यह मुद्दा सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी का हिस्सा है?

ओवैसी ने इस विधेयक को लेकर केंद्र सरकार के सहयोगी दलों को भी कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि बीजेपी लोकसभा में अकेले दम पर नहीं टिक सकती, उसे नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू, जयंत चौधरी और चिराग पासवान की बैसाखियों का सहारा लेना पड़ता है। ओवैसी ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि यदि इन दलों ने इस विधेयक का समर्थन किया तो मुसलमान उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे। यह चेतावनी सीधी है—या तो हमारे साथ रहो या राजनीतिक वनवास भुगतो। यह बयान विपक्षी राजनीति के पुराने हथकंडों की याद दिलाता है, जहां हर मुद्दे को समुदाय विशेष की भावनाओं से जोड़कर हवा दी जाती है।

लेकिन इस मुद्दे का दूसरा पहलू भी है। सरकार की तरफ से यह दावा किया जा रहा है कि यह विधेयक किसी भी समुदाय के खिलाफ नहीं है। बीजेपी ने इसे लेकर विपक्ष पर भ्रामक प्रचार फैलाने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता और प्रबंधन को बेहतर करने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है। हालांकि, विपक्षी दल इसे 'छुपा एजेंडा' करार दे रहे हैं। सवाल यह है कि अगर सरकार की मंशा साफ है तो फिर यह विवाद इतना उग्र क्यों हो रहा है? क्या विपक्ष केवल इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहा है या वाकई में मुसलमानों के लिए कोई गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है?

इस विधेयक को लेकर इस्लामिक संगठनों ने भी विरोध दर्ज कराया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने कहा कि वक्फ संपत्तियों को लेकर सरकार का यह कदम न केवल संविधान विरोधी है, बल्कि यह मुस्लिम समाज के अधिकारों का हनन भी है। विरोध प्रदर्शनों में लोगों ने काली पट्टियाँ बाँधीं और सरकार के इस कदम को मुस्लिम समाज के विरुद्ध साजिश करार दिया। विरोध का यह तरीका दिखाता है कि यह विधेयक सिर्फ एक कानूनी मसला नहीं रह गया, बल्कि इसे सामुदायिक अस्मिता से जोड़ दिया गया है।

लेकिन क्या यह केवल मुसलमानों की संपत्तियों पर ही असर डालेगा? अगर ऐसा होता तो विपक्षी दलों के अलावा अन्य वर्गों से भी आवाज उठती। क्या यह पूरी राजनीति केवल ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने के लिए की जा रही है? अगर विपक्ष को वाकई इस विधेयक से परेशानी है तो वे कानूनी रास्ते क्यों नहीं अपनाते? सवाल कई हैं, लेकिन जवाबों की संख्या कम है।

अंततः, यह विधेयक पारित होगा या नहीं, यह तो समय बताएगा। लेकिन अभी जो तस्वीर बन रही है, वह यह है कि भारतीय राजनीति में धार्मिक और संपत्ति से जुड़े मुद्दे कभी ठंडे नहीं पड़ते। यह मुद्दा संसद के गलियारों से निकलकर सड़कों तक आ चुका है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार इस विधेयक में कोई संशोधन करती है या फिर अपने रुख पर अडिग रहती है।

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